Dr. Vinay Purohit, MBBS, MD- Pharmaceutical Physician & Head – Medical Affairs, Bayer Consumer Health, India
(डॉ. विनय पुरोहित, एमबीबीएस, एमडी – फ़ार्मास्यूटिकल फ़िज़ीशियन और हेड– मेडिकल अफेयर्स, बेयर कंज़्यूमर हेल्थ, इंडिया)
National Nutrition Week: किसी गर्भवती महिला को दी जाने वाली यह सलाह अक्सर सुनने को मिलती है कि— “अब तुम्हें दो लोगों के लिए खाना चाहिए !”
गर्भावस्था के दौरान बढ़ी हुई भूख या प्रेग्नेंसी क्रेविंग्स को पूरा करने के लिए आमतौर पर पारंपरिक भोजन की मात्रा बढ़ा दी जाती है. लेकिन असली सवाल यह है कि कितने लोग सच में जानते हैं कि इस समय शरीर को किन पोषक तत्वों की सबसे अधिक ज़रूरत होती है? सच तो यह है कि बहुत कम लोग इसकी सही जानकारी रखते हैं, और कई शोध भी इस बात की पुष्टि करते हैं. भारत में आधे से अधिक गर्भवती महिलाओं में कुछ माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी पाई जाती है. इस स्थिति को ही ‘हिडन हंगर’ यानी छिपी हुई भूख कहा जाता है.
सितंबर में राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है और इस मौके पर यह समझना जरूरी है कि महिलाओं के जीवन में हर पड़ाव पर पोषण की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है.
महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान ही नहीं, पूरी जिंदगी कुछ खास पोषण संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था और महिलाओं की पोषण संबंधी जरूरतों को लेकर कम समझ इसका कारण है. ऐतिहासिक रूप से पोषण को लेकर किए जाने वाले विभिन्न शोध में भी महिलाओं की पोषण संबंधी जरूरतों की अनदेखी कर दी जाती है. लैंसेट में हाल ही में ‘ग्लोबल एस्टिमेशन ऑफ डायटरी माइक्रोन्यूट्रिएंट इनएडिक्वेसीज: ए मॉडलिंग एनालिसिस’ शीर्षक से प्रकाशित अध्ययन में सामने आया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं को खराब पोषण का सामना करना पड़ता है. साथ ही इसमें महिलाओं में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी को लेकर डाटा की कमी का उल्लेख भी किया गया.
पूरे जीवन में महिलाएं किशोरावस्था से लेकर मीनोपॉज तक कई तरह के फिजियोलॉजिकल, न्यूरोलॉजिकल और हार्मोनल बदलावों से गुजरती हैं, जिसमें बहुत सोच समझकर न्यूट्रिशनल सपोर्ट की जरूरत होती है.
महिलाओं के जीवन के हर चरण में पोषण संबंधी जरूरतों को समझना:
युवावस्था – जब विकास एवं सपनों को पंख देने के लिए पोषण की जरूरत होती है
किशोरावस्था एक ऐसे कैटरपिलर की तरह है जो अपने ककून में बंद होकर तितली बनने की तैयारी कर रहा हो. इस समय शरीर और मन भीतर ही भीतर खुद को युवावस्था के लिए तैयार कर रहे होते हैं. यौवनारंभ यानी प्यूबर्टी के दौरान कई तरह के शारीरिक, भावनात्मक एवं मानसिक बदलाव होते हैं और इस बदलाव में मदद के लिए पर्याप्त पोषण बहुत जरूरी होता है. इन बदलावों से शारीरिक तौर पर ही नहीं, बल्कि भावनात्मक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है.
आयरन से भरपूर आहार जैसे पालक, दाल और फोर्टिफाइड अनाज से मासिक धर्म के दौरान होने वाले आयरन लॉस की भरपाई करने में मदद मिलती है. वहीं, दूध, दही और बादाम जैसे कैल्शियम से भरपूर स्रोत हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए जरूरी हैं. विटामिन बी से मेटाबॉलिज्म बेहतर होता है और एनर्जी लेवल सही रहता है. साबुत अनाज, प्रोटीन और फलों से भरपूर बैलेंस्ड डाइट ये युवावस्था में महिलाओं को शरीर मजबूत बनाने और बड़े सपने देखने में मदद मिलती है. अगर आहार में कुछ कमी रह जाए तो मल्टीविटामिन सप्लीमेंट्स से भी इसकी भरपाई की जा सकती है.
मातृत्व – जब आपको दो लोगों के लिए पोषण की जरूरत होती है
मातृत्व जीवन का एक ऐसा पड़ाव है जहां मां और बच्चे, दोनों की सेहत के लिए अतिरिक्त पोषण की जरूरत होती है. हालांकि पीढ़ियों से बनी धारणा और जानकारी की कमी के कारण अक्सर ऐसा हो नहीं पाता है.
जागरूकता की इस कमी के कारण कई तरह की जटिलताएं आ सकती हैं. गर्भावस्था के दौरान एनीमिया सबसे आम समस्या है, जिससे प्रसव के समय मुश्किल आ सकती है.8 गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त पोषण से स्वस्थ रहने और प्रसव के बाद जल्दी रिकवर होने में मदद मिलती है. आयरन से भरपूर आहार लेने से गर्भ में पल रहे शिशु के विकास में मदद मिलती है, साथ ही मां के शरीर में रेड ब्लड सेल्स की सप्लाई बेहतर होती है.9 फोलिक एसिड भी एक महत्वपूर्ण सप्लीमेंट है, जो गर्भ में पल रहे शिशु के विकास में मदद करता है. हालांकि इस दौरान सिर्फ आयरन और फोलिक एसिड ही नहीं, बल्कि विटामिन बी12, विटामिन बी6, जिंक और कॉपर जैसे कई अन्य माइक्रोन्यूट्रिएंट्स को भी आहार में शामिल करना चाहिए. विटामिन बी12 और बी6 से मां को जी मचलाने जैसी की समस्या से राहत मिलती है और बच्चे में न्यूरोजेनेसिस और साइनेप्टिक कनेक्टिविटी बनाने में मदद मिलती है. वहीं, जिंक और कॉपर बच्चे के मस्तिष्क के विकास के लिए जरूरी हैं और इनसे गर्भावस्था से जुड़े अन्य खतरे भी कम होते हैं.
कैल्शियम, विटामिन डी और मैग्नीशियम भी मां और बच्चे दोनों के विकास में मदद करते हुए गर्भावस्था के दौरान स्वास्थ्य सही रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. कैल्शियम बच्चे की हड्डियों एवं दांतों के विकास के लिए बहुत जरूरी है, वहीं विटामिन डी से शरीर में कैल्शियम का अवशोषण सही होता है और इम्यून मजबूत होता है. मैग्नीशियम से मांसपेशियों को आराम मिलता है, ऐंठन की समस्या और समयपूर्व प्रसव का खतरा कम होता है. यह ब्लड प्रेशर को नियमित करने में भी मदद करता है. ये न्यूट्रिएंट्स गर्भावस्था के दौरान होने वाली हाई बीपी की समस्या, जन्म के समय बच्चे का कम वजन और कमजोर विकास जैसी परेशानियों को कम करने में मदद करते हैं. इसलिए गर्भावस्था के दौरान इनके सप्लीमेंट को अपने आहार का हिस्सा बनाना चाहिए. विशेष रूप से ऐसे लोगों को, जिनके लिए डायटरी इनटेक अपर्याप्त है. वैसे तो कैल्शियम, विटामिन डी और मैग्नीशियम पूरी गर्भावस्था के दौरान महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन दूसरी और तीसरी तिमाही के दौरान इनकी जरूरत सबसे ज्यादा रहती है.
गर्भावस्था के दौरान और प्रसव के बाद महिलाओं को संतुलित आहार लेना चाहिए, जिसमें पर्याप्त न्यूट्रिएंट्स हों. उन्हें अपने आहार में फलियों को शामिल करना चाहिए. हेल्दी फैट (नट्स एवं फिश से मिलने वाले ओमेगा-3 फैटी एसिड्स) भी जरूरी हैं. साथ ही ज्यादा चीनी एवं सैचुरेटेड फैट वाले प्रोसेस्ड फूड से बचना चाहिए.
दूध और दही कैल्शियम के बेहतरीन स्रोत हैं. इनसे हड्डियों के विकास में मदद मिलती है और मां का भी बोन लॉस नहीं होता है. विटामिन डी के लिए सैलमन जैसी फैटी फिश और फोर्टिफाइड मिल्क को आहार में शामिल कर सकते हैं. विटामिन डी से शरीर में कैल्शियम का अवशोषण बढ़ता है और इम्यून फंक्शन बेहतर होता है. पालक, कद्दू के बीज और साबुत अनाज से मैग्नीशियम मिलता है.
मीनोपॉज और उसके बाद – फिर से मजबूती पाने के लिए होती है पोषण की जरूरत
महिलाओं में आमतौर पर 45 से 50 साल की उम्र के आसपास मीनोपॉज होता है. कुछ महिलाओं में यह पहले भी हो सकता है. इस दौरान कई तरह की मुश्किलें हो सकती है. अध्ययन बताते हैं कि 75 से 80 प्रतिशत महिलाओं में इस दौरान वैसोमोटर लक्षण, जैसे हॉट फ्लैश और रात में पसीना आना आदि दिखते हैं. इनसे मानसिक स्वास्थ्य, भूख और नींद की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.
हड्डियों को मजबूत बनाए रखने और हार्मोनल बदलाव के दौरान स्वास्थ्य को सही रखने के लिए कैल्शियम , विटामिन डी और एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर आहार की जरूरत होती है. इससे मीनोपॉज से जुड़ी कुछ परेशनियों को कम करने में मदद मिलती है. इसके अतिरिक्त, अपर्याप्त डाइट के कारण होने वाली कमी को सप्लीमेंट्स की मदद से पूरा करना भी महत्वपूर्ण है.
महिलाओं को जीवन के हर पड़ाव पर पर्याप्त पोषण की जरूरत होती है. पोषण से भरपूर आहार और उसके साथ जरूरी सप्लीमेंट्स को बढ़ावा देने की जरूरत है, जिससे न्यूट्रिएंट्स का संतुलन बने और सही पोषण सुनिश्चित हो. आहार से जुड़ी इन जरूरतों को जानने और समझने से महिलाओं में होने वाली पोषण संबंधी कमियों को दूर करने में मदद मिलेगी, जिनकी अक्सर अनदेखी हो जाती है. साथ मिलकर हम स्वास्थ्य एवं कल्याण को लेकर ज्यादा व्यापक दृष्टिकोण अपना सकते हैं.
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