Salima Tete: सलीमा टेटे की बातचीत में ज्यादा दिलचस्पी नहीं है. वे दुनिया को एक पर्यवेक्षक के तौर पर देखना पसंद करती हैं. लेकिन 23 साल की उम्र में भारतीय महिला हौकी टीम की सब से कम उम्र की कप्तान एक अलग प्रवृत्ति की ओर झाक रही हैं. इन दिनों अपनी बात रखना उन की जिम्मेदारी का हिस्सा है.

कभीकभी इस का मतलब ऐसे तर्क में दखलंदाजी करना हो सकता है जिस के खेल के मैदान से बाहर फैलने का डर हो. उन का मकसद होता है अपनी टीम की खिलाड़ियों को यह एहसास दिलाना कि उन के पास सहारा है. ‘‘अभी मैं उन को बोलती हूं, ‘तू यह कर सकती है’ क्योंकि अभी बोलना बहुत जरूरी है और जो मुझे रिस्पौंसिबिलिटी मिली है, मैं उसे पूरी तरह से अपनी तरफ से (निभाने की) कोशिश करूंगी,’’ उन्होंने मुझे बताया कि जब हम ने जुलाई में एक सुबह वीडियो कौल पर बात की थी.

बात सलीमा ने गहरी की, लेकिन उन के बोलने का अंदाज हलका था जो उन्होंने मुझे एक कोमल, मानो आत्मजागरूक हंसी के साथ बताई. उन्होंने आगे कहा, ‘‘मैं यही चाहती हूं कि मैं और बोलूं खिलाड़ियों को ताकि आत्मविश्वास आए खिलाड़ियों को भी.’’

इस से पहले कि वे बैंगलुरु स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण केंद्र में 1 महीने के सीनियर महिला राष्ट्रीय कोचिंग कैंप के लिए रवाना होतीं, वे रांची में थोड़ी देर रुक कर आराम कर रही थीं.

सलीमा हौकी को भी उतनी ही शिद्दत से खेलती हैं. मैदान के बाहर भले ही ये युवा मिडफील्डर शांत रहना पसंद करती हों, लेकिन अंदर उतरते ही उन की रफ्तार बिजली की तरह चमकती है. उन की रफ्तार इतनी तेज है कि कथित तौर पर भारत के पूर्व हौकी कोच, डच श्योर्ड मारिन ने उन्हें ‘फेरारी’ उपनाम दिया था.

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