Freedom After Marriage: भारतीय कंस्टीटूशन ने औरतों को जो अधिकार दिए हैँ वो मर्दवादी समाज को हजम नहीं हो रहे. मीडिया, राजनीती और अदालतों में ज्यादातर मर्दवादी मानसिकता के लोग बैठे हैँ जो औरतों के अधिकारों के खिलाफ हर तरह के हठकंडे अपनाते हैँ. कई मामलों में इस मर्दवादी लॉबी की मानसिकता उजागर होती रहती है. न्यायालय में बैठे जजों ने तलाक के कई मामलों में ऐसी अनर्गल टिप्पड़िया की हैँ जिससे इन जजों के अंदर औरतों के खिलाफ बैठी कुंठायें साफ झलक जाती हैँ.
अभी हाल ही में एक महिला के तलाक का मामला सुप्रीम पहुंचा. महिला और उसका पति सिंगापुर में जॉब कर रहे थे. दोनों के दो छोटे बच्चे भी हैँ. सिंगापुर में आपसी मनमुटाव के चलते महिला हैदराबाद आ गई और यहीं रहने लगी. दोनों के बीच रिश्ते इतने खराब हो गये की महिला को तलाक के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ गया.
वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये अदालत में पेश हुई महिला ने कहा कि उसका पति, जो सिंगापुर में रह रहा था और इस समय भारत में है, इस मामले को सुलझाने के लिए तैयार नहीं है. वह सिर्फ मुलाकात का अधिकार तथा बच्चों की कस्टडी चाहता है.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और आर महादेवन की पीठ ने महिला से पूछा कि बच्चों के साथ सिंगापुर लौटने में आपको क्या दिक्कत है? महिला ने कुछ कठिनाइयों का हवाला देते हुए कहा कि सिंगापुर में पति के व्यवहार के कारण उसके लिए वापस लौटना बेहद मुश्किल हो गया है.
सिंगल मदर होने के नाते आजीविका के लिए नौकरी की जरूरत पर जोर देते हुए महिला ने कहा कि उसे अलग रह रहे पति से कोई गुजारा भत्ता नहीं मिला है. पति के वकील ने कहा कि दोनों की ही सिंगापुर में काफी अच्छी नौकरी है, लेकिन पत्नी ने बच्चों के साथ सिंगापुर लौटने से इन्कार कर दिया. पत्नी को आजादी चाहिए.
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