Things to Consider Before Moving Abroad: हमारे देश में लोगों को विदेश जाने का बहुत क्रेज रहता है. सोचते हैं विदेश जा कर बस जाएंगे तो जैसे कोई खजाना हाथ लग जाएगा. किसी की नौकरी विदेश में लगती है तो परिवार वाले, दोस्त, रिश्तेदार सब उम्मीद लगाते हैं कि बस किसी तरह वह उन्हें भी विदेश बुला ले. कई बार ऐसा हो भी जाता है लेकिन उस के बाद क्या?
उस के बाद शुरू होती हैं असली मुश्किलें. जी हां, किसी देश का वीजा लगने से कहीं ज्यादा मुश्किल है उस देश के मुताबिक खुद को ढालना. बहुत कम लोग हैं जो इस पर खरा उतरते हैं. कितने ही इंडियन पश्चिमी और एशियन देशों की जेलों में लंबी सजा काट रहे हैं. कुछ तो जानकारी के अभाव में हुई गलतियों की सजा भुगत रहे हैं.
बच्चों की परवरिश
अमेरिका में 8 साल के एक बच्चे ने अपनी मदर का फोन ले कर अमेजन से 70 हजार लौलीपौप और्डर कर दिए. 4 हजार डौलर का बिल देख कर महिला के होश उड़ गए.
सोचिए, अगर किसी इंडियन बच्चे ने ऐसा किया होता तो पेरैंट्स क्या करते? जाहिर है, गुस्से में बच्चे को पीटने लगते. लेकिन अमेरिकी मौम ने ऐसा कुछ नहीं किया.
पश्चिमी देशों में आप अपने बच्चे पर हाथ नहीं उठा सकते. बच्चों को हाथ से खाना नहीं खिला सकते. माना जाएगा कि आप जबरदस्ती उन के मुंह में खाना ठूंस रहे हैं. वहां इसे ‘फोर्स फीडिंग’ कहा जाता है. बच्चों का कमरा और बिस्तर आप से अलग होना चाहिए. वे आप के साथ नहीं सो सकते. उन के कमरे में उन की उम्र के मुताबिक खिलौने होने जरूरी हैं.
नाबालिग बच्चे के सामने बैठ कर शराब नहीं पी सकते. उस के सामने गाली दे कर बात नहीं कर सकते. उस के सामने एकदूसरे पर चिल्ला नहीं सकते. ऐसा कुछ भी करते हैं तो आप को अयोग्य पेरैंट्स करार दे कर बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी के हवाले किया जा सकता है.
कुछ साल पहले रानी मुखर्जी की एक फिल्म आई थी, ‘मिसेज चटर्जी वर्सेज नार्वे.’ यह फिल्म सागरिका चक्रवर्ती की असली जिंदगी पर आधारित है जो पति के साथ नार्वे चली गई थी. सरकारी एजेंसियों को भनक पड़ी कि सागरिका अपने बच्चों को हाथ से खाना खिलाती है. उन के घर पर निगरानी होने लगी. निगरानी करने वाली टीम ने नैगेटिव रिपोर्ट दी तो उन के दोनों बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी को सौंप दिया गया.
सालों की लंबी लड़ाई के बाद सागरिका को अपने बच्चे वापस मिले. नार्वे सरकार ने उसे कस्टडी न दे कर, बच्चों को उस के रिश्तेदारों को ही सौंपा क्योंकि उन की नजर में वह एक अनफिट मां थी. सागरिका ने अपनी औटोबायोग्राफी ‘द जर्नी औफ ए मदर’ में इस पूरे संघर्ष का जिक्र किया है.
बच्ची के साथ क्रूरता
मगर गुजरात का एक और परिवार है, जिस की बच्ची फोस्टर केयर में पल रही है. एक दिन बच्ची के डायपर में खून आया. वे उसे डाक्टर के पास ले कर गए. डाक्टर ने दवाई दी. फौलोअप के लिए दोबारा गए तो बच्ची को उन के साथ घर नहीं आने दिया गया. कहा गया कि पेरैंट्स ने बच्ची के साथ क्रूरता की है. चाइल्ड केयर एजेंसी की टीम क्लीनिक से ही बच्ची को ले कर चली गई. उस समय बच्ची 7 महीने की थी. सालों बीत गए, वह परिवार अब तक बच्ची को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहा है.
ऐसे मामलों में अगर पेरैंट्स खुद को बेकुसूर साबित नहीं कर पाते हैं तो बच्चा 18 साल की उम्र तक फोस्टर केयर में रहता है. मतलब चाइल्ड केयर एजेंसी कुछ लोगों को बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी देती है. ये लोग फोस्टर पेरैंट्स कहलाते हैं. इन्हें सरकार की तरफ से, ऐसे बच्चों को पालने की तनख्वाह मिलती है. 18 साल के बाद बच्चे की मरजी होती है.
मनप्रीत सालों पहले पंजाब से यूरोप जा कर बस गया था. एक दिन गुस्से में पत्नी पर हाथ उठा दिया. पत्नी ने पुलिस को फोन कर दिया. वह अरैस्ट हो गया. पत्नी ने बताया कि उस ने बच्चों के सामने उस पर हाथ उठाया था. इन्वैस्टिगेशन में यह भी पता चला कि वह रोज शराब पीता था और वह भी बच्चों के सामने तो कोर्ट और ज्यादा सख्ती से पेश आया. सालों की सजा काटने के बाद जेल से छूटा तो भी घर नहीं जा सका क्योंकि कोर्ट ने माना कि वह बच्चों के सामने फिर से ऐसा कर सकता है और बच्चों के लिए ऐसा माहौल ठीक नहीं है. वह घर के कम से कम 100 फुट के दायरे में नहीं जा सकता.
रिस्ट्रेनिंग और्डर
इस और्डर को रिस्ट्रेनिंग और्डर कहा जाता है. अगर वह इसे नहीं मानता है तो उसे फिर से जेल भेजा जा सकता है. उसे बच्चों से केवल निगरानी वाली मुलाकात की इजाजत दी गई. मतलब बच्चों के साथ कोई और बालिग हो तभी वह बच्चों से मिल सकता है वह भी घर के बाहर.
कई लोगों को तो कोर्ट जीपीएस ऐंकल ब्रेसलेट पहनने का भी हुक्म देता है ताकि कोर्ट को पता चलता रहे कि कहीं वह रिस्ट्रेनिंग और्डर का उल्लंघन तो नहीं कर रहा है.
शैलजा कुछ साल पहले पति और बच्चों के साथ मुंबई से यूके जा कर बस गई. एक दिन पड़ोसियों ने उस के घर से लड़ाई की और बच्चों के जोरजोर से रोने की आवाजें सुनीं और पुलिस को फोन कर दिया. पुलिस ने उसे और उस के पति को अरैस्ट कर लिया और बच्चों को चाइल्ड केयर एजेंसी ले गई. कोर्ट ने उन्हें अच्छे पेरैंट्स नहीं माना. बच्चों की कस्टडी के लिए दोनों को करीबी रिश्तेदारों के नाम देने के लिए कहा गया. वहां करीबी रिश्तेदारों जैसे दादादादी, नानानानी, चाचाचाची आदि को ईएंड टैंडेर फैमिली कहा जाता है. शैलजा के पेरैंट्स नहीं थे, न कोई और जो उस के बच्चों की जिम्मेदारी ले पाता. लिहाजा उस के पति ने अपने पेरैंट्स के नाम दिए.
यूके से एक टीम छानबीन करने मुंबई दादादादी के घर आई. जांच हुई कि दादादादी के पास कमाई का क्या साधन है, उन का बैंक बैलैंस कितना है, उन का लाइफस्टाइल कैसा है, वे बच्चों को कहां रखेंगे, उन की पढ़ाई कैसे होगी, उन के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान कैसे रखा जाएगा, बच्चों के पोषण के लिए वे उन्हें क्या खिलाएंगे, बच्चों को आसपास का कैसा माहौल मिलेगा, बच्चे किस के साथ खेलेंगे. जी हां, आप को जान कर शायद हैरानी होगी कि वे बच्चों के कमरे का साइज तक चैक करते हैं. बहुत गहन छानबीन के बाद उन्होंने दादादादी को बच्चों की परवरिश के लिए फिट नहीं पाया. अब बच्चे फोस्टर केयर में पल रहे हैं.
आसान नहीं देखभाल
प्राइवेट डिटैक्टिव राहुल राय गुप्ता बताते हैं, ‘‘वैस्टर्न कंट्रीज में बच्चों को ले कर कानून बेहद सख्त है. बच्चों को कार में ले कर जा रहे हैं तो गोद में नहीं बैठा सकते. उन के लिए अलग से सीट इंस्टौल करानी पड़ती है और वह भी उन की उम्र के मुताबिक अलगअलग होती है. अगर स्कूल में बच्चे के सिर में जूएं मिल जाएं, कपड़े अच्छी तरह से धुले हुए न हों या प्रैस न किए हुए हों तो टीचर के माइंड में यह मैसेज जाता है कि पेरैंट्स बच्चों का खयाल नहीं रखते. किसी बौडी पार्ट पर हलकीफुलकी चोट दिखाई दे तो इन्वैस्टिगेशन होती है.
अगर बच्चा कह दे कि उस के मम्मी या पापा या बड़े भाईबहन ने उसे धक्का दिया था या मारा था या फिर कुछ न भी कहे तो भी स्कूल चाइल्ड केयर एजेंसी को खबर कर देता है. पेरैंट्स की इन्वैस्टिगेशन की जाती है. चाइल्ड केयर एजेंसी वाले बच्चे के घर जाते हैं. पूरा सैटअप देखते हैं, बच्चे को कैसे सुलाया जाता है, क्या और कैसे खिलाया जाता है. चूंकि हमारे देश का सिस्टम बिलकुल अलग है. पेरैंट्स को पता ही नहीं होता कि टीम आए तो उस के सामने बच्चे के साथ कैसे पेश आना है. लिहाजा ज्यादातर पेरैंट्स उस इन्वैस्टिगेशन में फेल हो जाते हैं.
‘‘इन देशों में 18 साल के होने पर बच्चों की लाइफ पेरैंट्स का अधिकार पूरी तरह से खत्म हो जाता है. पेरैंट्स उन को किसी भी चीज के लिए फोर्स नहीं कर सकते. कई बच्चे बालिग होते ही पेरैंट्स से अलग रहने लगते हैं. आप बालिग बच्चों के रहनसहन, पहननेघूमने पर रोकटोक नहीं कर सकते. उन के दोस्तों पर सवाल नहीं उठा सकते. शादी के लिए उन के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते. टोकाटाकी करेंगे तो भी वे पुलिस को फोन कर सकते हैं. इसलिए विदेश जाने से पहले पेरैंट्स को खुद से सवाल करना चाहिए कि क्या वे इस के लिए तैयार हैं.’’
कमर कस लें
नताशा के पति की कनाडा में नौकरी लगी तो पूरी फैमिली कनाडा जा कर बस गई. वहां सारा काम खुद करना पड़ता था. नताशा उम्मीद करती थी कि पति उस का हाथ बंटाए लेकिन पति को लगता था कि वह जौब नहीं करती तो घर का काम वही करे. एक दिन लड़ाई के दौरान नताशा के पति ने उसे धक्का दे दिया. नताशा ने पुलिस को काल कर के कहा कि उस का पति उसे मार रहा है. पुलिस तुरंत पहुंच गई और उस के पति को अरैस्ट कर लिया.
विदेश जा कर बसने से पहले समझ लें कि खाना बनाना, बरतन धोना, घर साफ करना, कपड़े धोना, प्रैस करना, फ्रिज साफ करना, बाथरूम, टौयलेट साफ करना, पौधों की देखभाल करना, ए टू जैड काम खुद करने होंगे.
सफाई वाला कूड़ा घर से ले कर नहीं जाएगा. वहां हर घर में सूखे, गीले, प्लास्टिक के कचरे के अलगअलग बड़ेबड़े कूड़ेदान होते हैं. प्लास्टिक कचरे वाली डस्टबिन को रिसाइक्लिंग बौक्स या रिसाइक्लिंग बिन कहा जाता है. जिस दिन कूड़े का पिक अप हो यानी सरकारी गाड़ी आनी हो, उस दिन औफिस जाने से पहले वे कूड़ेदान बाहर रखने होंगे. वह भी साफसुथरी हालत में. कूड़ेदान गंदे होंगे या निर्धारित डब्बों में कूड़ा नहीं रखा होगा तो गाड़ी कूड़ा नहीं ले कर जाएगी. मोटा फाइन भी लग सकता है.
ऐसे देश जा रहे हैं, जहां बर्फ पड़ती है तो जान लें कि अपने घर के आगे की बर्फ खुद साफ करनी पड़ेगी. कार पर रोजाना बर्फ की मोटी परत जम जाती है, वह भी रोज साफ करनी होगी वरना जुरमाना लग जाएगा.
सरकारी गाडि़यां केवल गलियों में से बर्फ साफ करती हैं. नमक भी बिछाया जाता है. बर्फ गिरने के दिनों में आप अपनी गाड़ी गली में पार्क नहीं कर सकते वरना मोटा जुरमाना देना पड़ेगा. बर्फ हटाने और नमक बिछाने की गाडि़यों को गली के अंदर आने के लिए पूरी जगह चाहिए होती है. बुजुर्गों या विकलांग व्यक्तियों के लिए घर की बर्फ हटाने के लिए सरकारी सहायता मुफ्त मिलती है. उस का लाभ लिया जा सकता है.
पालतू जानवरों का शौक है तो
घर में डौग वगैरह पालने के लिए अलग नियम हैं. ज्यादातर देशों में डौग पार्क बने होते हैं. वहां उन्हें खुला छोड़ सकते हैं. बाकी किसी भी पार्क के बाहर लिखा होता है कि पालतू जानवरों को अंदर जाने की परमिशन है या नहीं. लेकिन वहां भी उन्हें बिना जंजीर के नहीं रख सकते. नियमों को न मानने पर मोटा जुरमाना लगेगा.
डौग रास्ते या पार्क में टौयलेट कर दें तो उसे उठाना पड़ेगा. उस के लिए वहां के लोग साथ में पौलीबैग ले कर चलते हैं. जैसे ही पालतू जानवर टौयलेट करता है वे तुरंत उसे उस बैग में उठा लेते हैं. ऐसा न करने पर भी जुरमाना लगता है.
चाहे डौग पालें या बिल्ली, कबूतर, मुरगा या मुरगी, उस का लाइसैंस लेना जरूरी है. पालतू जानवर को टैग लगाने की सिफारिश भी की जाती है. मतलब, उस के गले में उस का नाम, उम्र, मालिक का नाम, पता, लाइसैंस नंबर लिख कर लटकाना. इस से गुम होने की स्थिति में डिपार्टमैंट को उसे वापस मालिक से मिलाने में आसानी होती है. कुछ देशों में एक परिवार 3 से ज्यादा डौग नहीं रख सकता. पालतू जानवरों की बुनियादी जरूरतें जैसे भोजन, पानी, रहने की जगह, व्यायाम करने या खुले में घूमने के लिए अलग जगह, साफसफाई, सुरक्षा प्रदान करना उस के मालिक की जिम्मेदारी है. इस में कमी पाई गई तो सजा हो सकती है.
कुछ जरूरी टिप्स पर ध्यान दें
– ड्राइव करते हैं तो गाड़ी तय स्पीड लिमिट में ही चलानी होगी. पैदल चलने वालों के लिए
अलग ट्रैफिक लाइट होती है. बिना लाइट के भी कोई सड़क पार कर रहा हो तो भी आप को ही ध्यान देना पड़ेगा. आप की नजर चूकी और ऐक्सिडैंट हो गया तो कोर्ट में यह सफाई नहीं चलेगी कि वह अचानक आप की गाड़ी के आगे आ गया. गलती चाहे पैदल चलने वाले की हो, सजा आप को मिलेगी कि गाड़ी क्यों नहीं रोकी. वहां ड्राइविंग लाइसैंस देते समय ऐसी ट्रेनिंग दी जाती है.
– घर के पिछले हिस्से (वहां इसे बैकयार्ड कहा जाता है) में लौन की बेकार घास को बढ़ने से पहले ही काटना जरूरी है. कई जगह नियम है कि ये 6 इंच से बड़ी नहीं होनी चाहिए. लौन में टूटाफूटा सामान स्टोर नहीं कर सकते. इन नियमों को न मानने पर फाइन लगता है.
– वहां छोटे से छोटे जुर्म को भी काफी सीरियसली लिया जाता है. चाहे जानबूझ कर हुआ हो या अनजाने में. लंबी सजा भी मिलती है. नियम न मानने की आदत है तो इस आदत को बदल लें या फिर विदेश बसने का खयाल.
– अमेरिका में गन कल्चर काफी बढ़ रहा है. किसी से बहस करने से बचें. कोई गलत करे तो उस से उलझने के बजाय पुलिस को खबर कर दें.
– दुकान या स्टोर से शराब खरीदने का भी समय तय होता है. किसीकिसी दुकानदार के पास सुबह शराब बेचने का परमिट नहीं होता. इसलिए आप उसे इस के लिए फोर्स नहीं कर सकते.
– बार या रैस्टोरैंट में तय लिमिट से ज्यादा शराब सर्व नहीं की जाती. अगर बार या रेस्टोरेंट में आने से पहले कहीं पी है तो तय लिमिट से कम शराब ही सर्व की जाएगी. वेटर को पूरी ट्रेनिंग मिली होती है, यह पहचानने की कि व्यक्ति ने कितनी शराब पी हुई है. थोड़ा भी ऊंचा बोलते या वेटर से बहस करते हैं तो जेल की हवा खानी पड़ेगी.
– कई देशों में हर घर में धुएं के अलार्म हमेशा चालू स्थिति में होने जरूरी हैं. बैटरियों को साल में एक बार बदलना जरूरी होता है. अलार्म में कोई खराबी हो तो तुरंत ठीक करा लें. वरना जुरमाना लगेगा.
– किसी की हैल्प करने से पहले सोच लें. अमेरिका में रहने वाला करीब 60 साल का एक इंडियन वहां के एक स्टोर में गया. उस ने देखा कि किसी महिला का बच्चा गिर गया है. बच्चे को उठाने के लिए नीचे ?ाका तो महिला ने शोर मचा दिया कि वह उस के बच्चे को किडनैप कर रहा है. पुलिस आई और उसे अरैस्ट कर के ले गई. सीसीटीवी फुटेज में उस के खिलाफ कुछ नहीं मिला तब वह जेल से छूटा.
– पब्लिक ट्रांसपोर्ट का इस्तेमाल करते समय ध्यान रखें कि बस, ट्रेन, ट्राम बिलकुल टाइम पर चलती हैं.
– लाइन में लगना ही पड़ेगा. चाहे कितनी भी जल्दी क्यों न हो. धक्कामुक्की करेंगे तो जेल जा सकते हैं. कई जगह 2 लोग हों तो भी लाइन में खड़े होते हैं.
– वहां आम लोगों के लिए मनोरंजन केंद्र होते हैं. उन में कुछ न कुछ ऐक्टिविटीज और फैस्टिवल चलते रहते हैं. क्या फ्री है, किस ऐक्टिविटी पर फीस लगती है, इस के बारे में पहले से पता कर लें.