‘हाय बीवीजी, तेरे रुपए तो गाड़ी से नीचे गिर गए, देख तो.’ यह सुनते ही किसी भी औरत का चिंतित हो जाना आम बात है. इधर देवीजी गाड़ी से निकलीं नहीं कि उधर पर्स, बैग आदि गाड़ी के दूसरे दरवाजे से यह जा वह जा. दिल्ली का ठकठक गैंग इस तरह बहुतों को लूट रहा है. पर चूंकि औरतें कम ड्राइव कर रही हैं, इसलिए अभी औरतों को चोट पहुंचने के समाचार कम मिले हैं. पर यह काम है आसान.

इस काम को 5-6 लोग मिल कर करते हैं. पहले भोली सूरत का लड़का, आदमी या औरत में से कोई किसी का ध्यान बंटाता है फिर दूसरा उठाता है, तीसरे को पकड़ाता है और बाकी ले कर रफूचक्कर. अकेली औरत इधर देखे, उधर देखे, चिल्लाए, रोए पर माल तो गया.

अब छीनाझपटी उतनी नहीं होती नजर आ रही, जितनी ठकठक गैंग की उचकाई, क्योंकि इस में मोटा माल मिलता है और गाडि़यों में सीट पर रखे सामान की कीमत हाथ के पर्स या गले की चेन से ज्यादा होती है. एअरकंडीशंड गाडि़यों, जिन के शीशे बंद रहते हैं और सैंट्रल लौक की सुविधा होती है, से भी शातिर गैंग हाथ साफ करने में सफल हो जाते हैं, क्योंकि जैसे ही ड्राइव कर रहा जना दरवाजा खोल कर उतरता या उतरती है, दूसरी ओर का दरवाजा भी अनलौक हो जाता है. यही तो मौका होता है माल पार करने का.

गाडि़यों में सामान ले जाना तो आम और स्वाभाविक बात है और उसे इस तरह के उचक्कों की निगाहों से छिपाया तो नहीं जा सकता पर अपनी आदतें सुधारी जरूर जा सकती हैं. सामान सीट पर रखने की जगह पैरों के पायदान पर रखना ज्यादा ठीक रहेगा चाहे वह हाथ का पर्स ही क्यों न हो.

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