औरतों के हकों के बारे में आज भी देश का एक बड़ा वर्ग जिस में जज भी शामिल हैं, औरतों को विवाह की गुलामी करने को सामाजिक जरूरत समझता है. बुलंदशहर की एक औरत अपने पति को छोड़ कर अपने एक प्रेमी के साथ रह रही है. उस का पति जबरन उस के घर में घुस कर दंगा करता था तो और ने अदालत के दरवाजा खटखटाया.

इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीशों जस्टिस .....कौशल जयेंद्र ठाकर और जस्टिस ने सुभाष चंद ने औरत को छूट देने से इंकार करते हुए कहा कि अदालत का दखल समाज में संदेश देगा कि अदालत इस अनैतिक संबंध को बढ़ावा दे रही है. अपनी बात की लीपापोती करते हुए अदालत ने यह अवश्य जोड़ा कि वह लिवइन संबंधों के खिलाफ नहीं है और धर्म और सैक्स के भेदभाव के बावजूद हरेक को अपने मनमर्जी के साथ रहने का हक है पर एक विवाहता अदालत से संरक्षण की मांग करेगी तो लगेगा कि अदालत समाज का तानाबाने तोड़ रही है.

विवाह एक कानूनी समझौता है जिस पर धर्म सवार हो गया है. असल में तो यह 2 जनों का ग्रेजी समझौता है और जब तक दोनों चाहें तभी तक ङ्क्षजदा रह सकता है. तो जैसे 2 भाई एक कमरे में मन मारकर रहने को मजबूर हो सकी है या 2 आफिस सहकर्मी झगड़े के बावजूद एक दूसरे के निकट बैठने को मजबूर किए जा सकते हैं, कानून उन्हें तब तक साथ रहने की इजाजत दे सकता है जब वे चाहें. विवाह या साथ रहना नितांत निजी मामला है, पौराणिक ग्रंथ भरे पड़े हैं जिन में आदमी और औरतों ने धाॢमक विवाह होने के बाद दूसरों से विवाह किया. आमतौर पर यह हक पुरुषों को ही था पर आज तब भी और आज भी औरतों के हजारों के साथ जबरन या सहमति से संबंध बनते रहे हैं.

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