न्यूयार्क से बहू श्रुति ने फोन पर कहा, ‘‘मम्मीजी, आप लैपटौप पर मेल चैक कर लेना. अनन्या का फोटो भेजा है.’’
हेमाजी ने तुरंत पति से गुहार लगाई और बैठ गईं लैपटौप के सामने. अनन्या को उन की बनाई भेजी ऊन की फ्राक पहने देख हेमाजी अपनी ही कृति पर मुग्ध हो उठीं. ऊन से बुनी गई फ्राक बहुत सुंदर व प्यारी लगी. अनन्या पर तो खूब फब रही थी. बस, फिर क्या था, उन की जो भी परिचिता या सहेली आती, वे उन्हें अनन्या का फोटो दिखाना न भूलतीं.
हेमाजी अपने जमाने की बुनाई विश्ेषज्ञ थीं. उन की बुनाई के चर्चे हर जगह होते. बुनाई विशेषांकों में भी उन के डिजाइन छप चुके थे. उन की नजर तो बस, ऊनी वस्त्रों के डिजाइन एवं रंग संयोजन पर ही होती. भले ही वह व्यक्ति खुद को घूरते देख फूला न समाए. वे मन ही मन उस का डिजाइन याद कर, घर जा कर बुन कर ही रहतीं. एक कार्यक्रम में सभी की नजर कलाकारों की गायकी पर थी. हेमाजी ‘हाय’ कर बैठीं, ‘हाय राम! यह तो एक और अदनान सामी है, इस की बीवी को इस के स्वैटर के लिए कितने सारे फंदे डालने पड़ते होंगे और कितनी बार गिरे फंदों को उठाना पड़ता होगा? इतने सारे फंदों के लिए लंबी सलाई कहां से ले कर आती होगी?’
हेमाजी को अपने कौशल को अतीत तक सीमित रखना उन के बस में नहीं था. अब बड़े तो हाथ के स्वैटर पहनने से रहे, नौनिहालों पर ही अपनी कारीगरी निछावर करती रहतीं. आम के आम गुठलियों के दाम. कम कीमत में ही सुंदर, सलीकेदार प्यारा सा उपहार तैयार हो जाता. ब्याज में तारीफ हो जाती सो अलग.
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