Women Empowerment: हमारे समाज में हमेशा कुछ जुमले गूंजते रहते हैं: ‘मर्द को दर्द नहीं होता,’ ‘लड़कियों की तरह क्यों रो रहे हो,’ ‘मर्द बनो, रोना बंद करो.’
ये शब्द केवल मजाक नहीं हैं बल्कि एक ऐसी मानसिकता की नींव हैं जो लड़कों को भावनाओं से काट देती है और लड़कियों को कमजोर मानने लगती है. सदियों से यही सोच महिलाओं को भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक रूप से पीछे खींचती रही है.
क्या वाकई महिलाएं भावनात्मक रूप से कमजोर हैं? प्रकृति ने न तो मर्दों को पत्थर दिल बनाया है और न ही औरतों को कमजोर. ये समाज की बनाई हुई सीमाएं हैं, जो हर पीढ़ी को सिखाई जाती हैं जैसे कोई नियम या परंपरा हो. यह सिखाया जाता है कि-
लड़कियां रो सकती हैं क्योंकि वे नाजुक होती हैं, लड़कों को रोना नहीं चाहिए क्योंकि वे मजबूत होते हैं. जबकि सच यह है कि भावनाएं हर इंसान की जरूरत होती हैं. फिर चाहे वह लड़की हो या लड़का.
भावनाएं: इंसानी गुण, न कि लिंग आधारित. आरव और साक्षी भाईबहन थे. एक दिन आरव बहुत परेशान था : उस का स्कूल बैग चोरी हो गया था. वह घर आ कर रो पड़ा.
पापा ने गुस्से में कहा, ‘‘क्या मर्द बनोगे ऐसे? लड़कियों की तरह क्यों रो रहे हो?’’
साक्षी ने धीरे से कहा, ‘‘पापा, दुखी होने पर कोई भी रो सकता है चाहे लड़का हो या लड़की.’’ पापा कुछ नहीं बोले, पर सोच में पड़ गए.
यह एक सामाजिक प्रोग्रामिंग है जो बचपन से ही सिखाई जाती है.
- लड़कों को गाड़ी, बंदूक मिलती है ताकतवर बनने के लिए.
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